|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|

به یُمن وجود تو ...
اي گشودهترين در
اي رساترين كلام
به يمن وجود تو
اي پيامآور هستي
تمام قصههاي زميني
از يادم رفت
...
قصههاي آسماني تو
همچو ريزش باران
زمين تشنهي اين سينه را
سيراب ميكند
...
ببار
اي سبزي بهار از تو
و بگشاي درهاي آسمان را
اي سُكر كلام تو
حياتبخش خستگي جانها
در جذبهي آسماني نگاه تو
تمام قصههاي زميني
از يادم رفت...
پَرنا
بازگشت
Share
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|